danikjanchetna@gmail.com28112020.
दैनिक जनचेतना
वर्ष:11,अंक:14,शनिवार,28नवंबर.2020.आज का संदेश .
समाज का मनुष्य की न्यूनतम आवश्यक्ताओं की पूर्ति करना कानूनी, नैतिक और भावनात्मक सभी पक्षों से अनिवार्य है। काम करते समय यदि हम से कोई दुर्घटना हो जाए तो कानून उस की पूर्ति का दण्ड देता है। मनुष्य का जन्म भी जाने, अन्जाने में समाज (माँ-बाप) द्वारा घटित दुर्घटना ही है। जन्म लेने वाले की इस में सहमति नहीं होती और ना ही कोई और भूमिका होती है। वह बेकसूर को तो पूरी आयु संघर्ष करने को अभिश्प्त होता है। समाज का नैतिक दायतव्य बनता है कि वह उस के कारण किए जा रहे संघर्ष में योगदान करे। और कुछ नहीं तो उस के जीवित रहने के लिए न्यूनतम आवश्यक्ताएँ ही जुटा दे। कानूंन के पक्ष से भी हम ऐसा करने को बाध्य हैं क्योंकि दुर्घटना हम से हुई है, जन्म के जिम्मेदार हम ही हैं। व्यव्यासक दलीलों को छोड़ भी दें तो भावनात्मक पक्ष से भी यह हमारे ही बच्चे हैं। हमारे ही वंश को इन्होंने आगे चलाना है। हमारे रीति रिवाजों, परंपरा को इन्हों ने ही जिंदा रखना है। हम क्यों इन्हें रोजी रोटी का चक्र में उलझाए हुए हैं ? ब्रहामण्ड में मात्र मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो कमा कर खाने को विवश है। आन्य सभी प्राकृति का ही खाते हैं। मनुष्य के करने को और बहुत कुछ है। उसे हमें खाने, वस्त्र और गृहस्थान आदि के संघर्ष से आजाद कर देना चाहिए।
भारत का इतिहास-17.
इतिहास किसी कौम, देश, राष्ट्र के लिए दर्पण होता है जिस में अपने अतीत के दर्शन किए जा सकते हैँ, भविष्य को संवारने हेतु बहुत कुछ सीखा जा सकता है। कल्याणकारी प्रकर्णो पर गर्व करने से उत्साह में वृद्धि होती है, शक्ति का संचार होता है। दुख्द घटनाओं के कारण हुई क्षति की पूर्ति तो नहीं हो पाती किन्तु उन्हें पुन: घटित होने से अवश्य रोका जा सकता है। हमारा दुर्भाग्य कि बड़ों बूढ़ों ने जीवन को ईश्वर की कृपा मान कर इतिहास लिखा नहीं। मध्य काल में इतिहास का निर्माण अवश्य किया गया परन्तु उसे संभाला नहीं जा सका। वर्तमान है तो जनता का युग परन्तु इतिहास हकूमत करने वालों का ही लिखा जा रहा है। सरकारी सरंक्षण में लिखा गया इतिहास गल्प के समीप रहता है, जिस में नामों स्थानों के अतिरिक्त सभी कुछ काल्पनिक होता है।
भारतीय़ इतिहास में आज.
28 नवंबर
मुख्य घटनाएँ:
- 1912 - इस्माइल कादरी ने तुर्की से अल्बानिया के आजाद होने की घोषणा की।
- 1956 - चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई भारत आए।
- 1966 - डोमनिकन रिपब्लिक ने संविधान अपनाया।
- 1990 - चुनावों के उपरान्त जान मेजर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने।
- 1996 - कैप्टन इन्द्राणी सिंह एयरबस ए-300 विमान को कमांड करने वाली पहली महिला बनीं।
- 1997- प्रधानमंत्री आई के गुजराल ने अपने पद से इस्तीफा दिया।
- 1999 - एशिया कप हॉकी का ख़िताब दक्षिण कोरिया ने पाकिस्तान को हराकर जीता, भारत ने कांस्य पदक मलेशिया को हराकर जीता।
- 2001 - नेपाल ने माओवादियों से निपटने हेतु भारत से दो हैलीकॉप्टर मांगे।
- 2002 - कनाडा ने हरकत उज मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाया।
- 2006 - नेपाली सरकार और माओवादियों के मध्य हथियारों के मैनेजमेंट पर संधि सम्पन्न।
- 2007 - दो एशियाई देशों के बीच मधुर होते रिश्तों के चलते द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार चीन के युद्धपोत जापान भेजे गए।
- 2012 - सीरिया की राजधानी दमिश्क में दो कार बम धमाकों में 54 मरे और 120 घायल हुये।
इंदर कुमार गुजराल
श्री इंदर कुमार गुजराल 21 अप्रैल, 1997 को भारत के 12 वें प्रधानमंत्री बने।
श्री गुजराल स्वर्गीय श्री अवतार नारायण गुजराल एवं स्वर्गीय पुष्पा गुजराल के पुत्र थे। उन्होंने एम.ए, बी.कॉम, पीएच.डी. और डी. लिट. की उपाधि प्राप्त की थी। उनका जन्म 4 दिसम्बर 1919 को झेलम में हुआ। 26 मई 1945 को उन्होंने श्रीमती शीला गुजराल से विवाह किया।
श्री गुजराल के माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने पंजाब के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। वर्ष 1931 में 11 वर्ष की उम्र में श्री गुजराल ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया जिसमें पुलिस ने उनको झेलम में युवा बच्चों के आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए गिरफ्तार कर लिया और बर्बरता से पीटा। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया।
भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले श्री गुजराल 1 जून 1996 से विदेश मंत्री रह चुके थे और 28 जून 1996 को उन्होंने जल संसाधन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। वह वर्ष 1989-90 में जल संसाधन मंत्री थे। 1976 से 1980 तक यूएसएसआर में भारत के राजदूत मंत्रिमंडल स्तररहे और 1967 से 1976 तक उन्होंने निम्नलिखित मंत्रिस्तरीय पदों का कार्यभार संभाला :
संचार एवं संसदीय मामलों के मंत्री;
सूचना, प्रसारण तथा संचार मंत्री;
निर्माण एवं आवास मंत्री;
सूचना एवं प्रसारण मंत्री;
योजना मंत्री
ग्रहण किये गए संसदीय पद:
इंदर कुमार जून 1996 से राज्य सभा के नेता रहे। अप्रैल 1993 से 1996 तक संसद की वाणिज्य और टेक्सटाइल की स्थायी समिति के अध्यक्ष; अप्रैल 1996 तक विदेश मामलों की स्थायी समिति के सदस्य; 1964 से 1976 और 1989 से 1991 तक संसद के सदस्य; 1992 में बिहार राज्यसभा के सदस्य; याचिका समिति, लोक लेखा समिति, राज्यसभा की नियम संबंधी समिति; राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समिति; राज्य सभा की सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य रहे।
अन्य महत्वपूर्ण पद
इंदर कुमार भारतीय दक्षिण एशियाई सहकारिता परिषद के अध्यक्ष; पूंजीगत योजना निगरानी समिति के सदस्य; रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण आईडीएसए) संस्थान के पूर्व अध्यक्ष; उर्दू के प्रोत्साहन( गुजराल समिति संबंधी सरकारी समिति के अध्यक्ष; 1959 से 1964 तक नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के उपाध्यक्ष; लाहौर छात्र संघ के अध्यक्ष; पंजाब छात्र महासंघ के महासचिव; कलकत्ता, श्रीनगर और दिल्ली में संयुक्त मोर्चा विपक्षी दल सम्मेलन के संयोजक और प्रवक्ता रहे।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल:
वह 1996 में हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के राजनेता; 1995 में जिनेवा में हुए मानव अधिकार संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता; 1990 में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता; 1990 में संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक विकास पर हुए विशेष सत्र के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता; 1994 और 1995 में संयुक्त राष्ट्र संघ के भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य; 1977 में शिक्षा और पर्यावरण पर यूनेस्को में हुए सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता; 1970, 1972 और 1974 में यूनेस्को के अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के स्थापन्न नेता; 1973 में पेरिस में यूनेस्को द्वारा मनुष्य और नई संचार प्रणालियों पर आयोजित संगोष्ठी के अध्यक्ष; 1995 में बुकारेस्ट में हुए अंतर संसदीय संघ सम्मेलन के प्रतिनिधि; 1994 में हुए कनाडा राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन के प्रतिनिधि; 1967 में कैनबरा (ऑस्ट्रेलिया) में हुई अंतर संसदीय संघ की बैठक के प्रतिनिधि; 1974 में पर्यावरण पर स्टॉकहोम में हुए संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के स्थापन्न नेता; 1975 में गैबॉन, कैमरून, कोंगो, चैड और मध्य अफ्रीका के लिए भारत के विशेष दूत; 1966 में गणराज्य मलावी के उद्घाटन के लिए भारत के विशेष दूत; 1961 में बुल्गारिया में विशेष दूत; श्रीलंका, भूटान, मिस्र और सूडान के राजनीतिक दौरे पर केन्द्रीय मंत्री; भारतीय दक्षिण एशियाई सहकारिता परिषद के अध्यक्ष; 1961 में हुए एशियाई रोटरी सम्मेलन के उपाध्यक्ष रहे।
सामाजिक संगठन जिनसे वे जुड़े रहे
श्री गुजराल नारी निकेतन न्यास एवं जालंधर पंजाब के ए.एन. गुजराल मेमोरियल स्कूल के अध्यक्ष; भारत पाक मैत्री संस्था के अध्यक्ष; दिल्ली कला थियेटर के संस्थापक एवं अध्यक्ष; लोक कल्याण समिति के उपाध्यक्ष; 1960 में दिल्ली के रोटरी क्लब के अध्यक्ष; 1961 में एशियाई रोटरी सम्मेलन के उपाध्यक्ष रहे।
विशेष रुचि:
श्री गुजराल राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों तथा थिएटर पर लेखन-कार्य और समीक्षा करते थे।
परेरणा .
सभ्यता और संस्कृति के
उत्थान और पतन
नर्मदा-3
सभ्यता और संस्कृति के उत्थान और पतन के साक्षी हैं नर्मदा के तटवर्तीय प्रदेश। प्रागैतिहासिक अवशेष, राजवंशों के इतिहास, पुरातत्वीय शोध, धार्मिक तीर्थ स्थलों की इसने कालचक्र के साथ अपनी जलधार जैसा प्रवाहमान रखा। प्रतिहार वंशीय महिपाल द्वारा संवत् 912 के बीच नर्मदा और अमरकंटक की मेखला को जीतने का ऐतिहासिक प्रमाण है। नर्मदा का यह उद्गम स्थल आचार्य गोविन्द पदाचार्य, सम्राट पुरुकुत्स की साम्राज्ञी नर्मदा के नाम पर नर्मदा नामकरण हुआ। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि नर्मदा सात कल्पों तक अमर है। प्रलयकाल में शंकर भगवान अपना तीसरा नेत्र इसी के तट पर खोलते हैं। आदि शंकराचार्य, महर्षि मार्कण्डेय का यहाँ आगमन हुआ था। यह स्थान मान्धाता, विदर्भराज, चेदि ययाति, हैहय आदि के सान्निध्य से धन्य हो गया है।
नर्मदा चिरकुमारी हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है। वे महर्षि मार्कण्डेय की शिष्या हैं, ऐसा भी कहा जाता है। नर्मदा और महर्षि मार्कण्डेय में गुरू-शिष्य परम्परा का पवित्र बंधन रहा है। मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा का विस्तृत बखान किया गया है जिसका सार संक्षेप है कि ‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गाँव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी क्षण और नर्मदा का जल इसी क्षण पवित्र कर देता है।’ एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान द्रष्टव्य है।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।
नर्मदा के तटों पर साहित्य, कला, संस्कृति, पुरातत्व और सामाजिक समरसता का एक साथ दिग्दर्शन होता है। नर्मदा नदी भारत की अधिकांश नदियों की दिशा के विपरीत बहती है। यानि पूर्व से पश्चिम की ओर। जनमानस में इसी कारण एक बुन्देलखण्डी लोकगीत प्रचलित है।
नरबदा मैया उल्टी तो बहै रे,
तिरवेनी बहे सूदी धार रे, नरबदा अरे हो
नरबदा मैया ऐसी तो मिली रे,
अरे ऐसे तो मिले जैसे मिल गए मताई और बाप रे,
नरबदा अरे हो........
नरबदा मोरी माता लगे रे, अरे माता तो लगे रे, तिरबेनी बेन रे, नरबदा अरे हो.....
नरबदा को पानी इमरत रे,
अरे पानी इमरत,
मैं तो तर गई बना नौका रे नरबदा अरे हो......
नरबदा में रेता बहे रे,
अरे लम्बी छिड़िया रे,
अरे लम्बी छिड़ियां से, गौरा रानी नहा रई केशरे,
नरबदा अरे हो........
नरबदा में डूबत बची रे,
अरे डूबत तो बची, पतरैया बलम तोरे भाग रे,
नरबदा अरे हो....
अतर की दो-दो सिसिया,
दो-दो सिसियां रे, एक संझा चढ़ाऊं,
एक भोर रे, नरबदा अरे हो.....
इस गीत को बम्बुलिया या भोला गीत कहा जाता है। मकर संक्रांति पर जब बुन्देलखण्डवासी नर्मदा मैया के स्नान को निकलते हैं तब वे बम्बुलिया या भोला गीत स-स्वर भाव विभोर होकर श्रृद्धा के साथ गाते है। मानो वह नर्मदा को आदरांजलि दे रहे हों। सच कहा जाय तो बुन्देलखण्ड अंचल में नर्मदा को गंगा से भी श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि नर्मदा यहाँ के जन-जीवन में रची बसी है। वह इस क्षेत्र विशेष के लिए जीवन-रेखा हैं। यहाँ की जन-मेदिनी नर्मदा को माँ, इसके पानी को अमृत मानते हैं। वह इसमें स्नान करके इस भवसागर से बिना नौका और पतवार के तर जाते हैं। जीवन जगत के व्यामोह और आवागमन से मुक्त हो जाते हैं।(शेष-कल)