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दैनिक जनचेतना
वर्ष:11,अंक:8,गुरूवार,19नवंबर.2020.आज का संदेश .
समाज में परिवर्तन हेतु प्रयत्न हमारी मूलभूत जिमेदारी है। यह उस पित्र ऋण की अदायगी है जो उन्हों ने हमें अमीबा जैसे तन्तु से हमें यहाँ तक लाने हेतु हम पर चढ़ाया परन्तु समाज में परिवर्तन हेतु सक्रिय होने से पूर्व कुछ मूल-भूत तथ्यों को अधिग्रण कर लेना हितकर रहता है। इस से गतिविधियां सीधी दिशा में रहती हैं, प्राप्तियों का मूलाँकन सरल रहता है और निराशा भी कम होती है। सर्व प्रथ्म, यह समझना आवश्यक है कि मनुष्य के स्वभाव, प्राकृतिक प्रवृतियों में कभी परिवर्तन नहीँ होता। यह मूलत: काम वासना से निर्देशित होती हैं अथवा इन का सम्बंध वितीय लाभ हानि से होता है। डर, भय, गुस्सा, मोह, ममता, काम, क्रोध, लोभ, हंकार, वैर, विरोध, नकल, हमदर्दी, शर्म, गोपनीयता, सुरक्षा आदि कभी समाप्त नहीं होतीं। इन की मात्रा में ही परिवर्तन संभव है। दूसरा, समाज में परिवर्तन सदैव होता रहता है परन्तु इस की गति धीमी होती है। तीसरा, हितों के टकराव के समय लाभकारी मौन रहता है जबकि हानि उठाने वाला मरने मारने में विलम्भ नहीँ करता।
भारत का इतिहास-10 .
वैदिक साहित्य के उत्तर में रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्य साहित्य का प्रणयन हुआ। सम्पूर्ण धार्मिक साहित्य में ये दोनों महाकाव्य अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि ने की जिसमें अयोध्या की रामकथा है। इसमें राज्य सीमा, यवनों और शकों के नगर, शासन कार्य रामराज्य आदि का वर्णन है। मूल महाभारत का प्रणयन व्यास मुनि ने किया। महाभारत का वर्तमान रूप प्राचीन इतिहास कथाओं उपदेशों आदि का भण्डार है। इस ग्रन्थ से भारत की प्राचीन सामाजिक तथा धार्मिक अवस्थाओं पर प्रकाश पड़ता है। इन दोनों महाकाव्यों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे आर्य संस्कृति के दक्षिण में प्रसार का निर्देश करते हैं। रामायण में तत्कालीन पौर जनपदों और महाभारत से ‘सुधमां’ और ‘देवसभा’ का हमें जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, उससे पता चलता है कि राजा किस सीमा तक स्वेच्छाचारी था और कहां तक उसके प्रभाव और कार्य की सीमायें इन राजनीतिक संस्थाओं तथा प्रजा प्रतिनिधित्व द्वारा परिमित थी।
भारतीय़ इतिहास में आज.
19 नवंबर
मुख्य घटनाएँ:
1824 : रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में बाढ़ से दस हजार लोगों की मौत.
1838 : केशब चंद सेन का जन्म.
1977 : मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात का ऐतिहासिक इजरायल दौरा. यह किसी अरब नेता का पहला इजरायल दौरा था. इस दौरान उन्होंने शांति स्थापना का प्रस्ताव पेश किया.
1982 : नयी दिल्ली में नौवें एशियाई खेलों की शुरूआत. एक लंबे अर्से के बाद देश में विशाल पैमाने पर खेल स्पर्धाओं का आयोजन किया गया.
1985 : अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव के बीच पहली मुलाकात. दोनों जिनेवा में एक शिखर सम्मेलन के दौरान मिले.
1994 : भारत की ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड चुनी गईं.
1995 : कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में विश्व कीर्तिमान बनाया.
1997 : कल्पना चावला अंतरिक्ष जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
2000 : पाकिस्तान की एक अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की मां नुसरत भुट्टो को दो वर्ष के कठिन कारावास की सज़ा सुनाई.
2007 : एमेजॉन ने किताब पढ़ने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरण किंडल की बिक्री शुरू की, जिसने ई-बुक्स को प्रचलित बनाने में बड़ा योगदान दिया.
कल्पना चावला
1 फरवरी के दिन कल्पना चावला का निधन हुआ था. वह अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी. कल्पना ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि तमाम छात्र-छात्राओं को सपनों को जीना सिखाया. भले ही 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्पना की उड़ान रुक गई लेकिन आज भी वह दुनिया के लिए एक मिसाल हैं. उनके वे शब्द सत्य हो गए जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं.
नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था. कल्पना अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय (उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ले ली थी) महिला थी. उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योती था. कल्पना ने फ्रांस के जान पियर से शादी की जो एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे.
जानते हैं उनके बारे में...
- करनाल में बनारसी लाल चावला के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं.
- घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू कहते थे. शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई. जब वह 8वीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की.
- कल्पना के पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे. परिजनों का कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी. वह अक्सर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे.
- कल्पना फिर अपने सपनों को साकार करने 1982 में अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका रवाना हुई. फिर साल 1988 में वो नासा अनुसंधान के साथ जुड़ीं. जिसके बाद 1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए कल्पना चावला का चयन किया.
- उन्होंने अंतरिक्ष की प्रथम उड़ान एस टी एस 87 कोलंबिया शटल से संपन्न की. इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से 5 दिसंबर 1997 थी.
- अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान उन्होंने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की.- इस सफल मिशन के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान कोलंबिया शटल 2003 से भरी.
- कल्पना की दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई. यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था.
- 1 फरवरी 2003 को धरती पर वापस आने के क्रम में यह यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया.
- 2003 में इस घटना में कल्पना के साथ 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की भी मौत हो गई थी.
पहले ही तय हो गई थी कल्पना चावला की मौत
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कोलंबिया स्पेस शटल के उड़ान भरते ही पता चल गया था कि ये सुरक्षित जमीन पर नहीं उतरेगा, तय हो गया था कि सातों अंतरिक्ष यात्री मौत के मुंह में ही समाएंगे. फिर भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. बात हैरान करने वाली है, लेकिन यही सच है. इसका खुलासा मिशन कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर ने किया था.
अंतरिक्ष यात्रा के हर पल मौते के साये में स्पेस वॉक करती रहीं कल्पना चावला और उनके 6 साथी. उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगने दी गई कि वो सुरक्षित धरती पर नहीं आ सकते. वो जी जान से अपने मिशन में लगे रहे, वो पल-पल की जानकारी नासा को भेजते रहे लेकिन बदले में नासा ने उन्हें पता तक नहीं लगने दिया कि वो धरती को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा चुके हैं, उनके शरीर के टुकड़ों को ही लौटना बाकी है.
उस वक्त सवाल ये था कि आखिर नासा ने ऐसा क्यों किया? क्यों उसने छुपा ली जानकारी अंतरिक्ष यात्रियों से और उनके परिवार वालों से. लेकिन नासा के वैज्ञानिक दल नहीं चाहते थे कि मिशन पर गये अंतरिक्ष यात्री घुटघुट अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हों को जिएं. उन्होंने बेहतर यही समझा कि हादसे का शिकार होने से पहले तक वो मस्त रहे. मौत तो वैसे भी आनी ही थी.
असफलता से नहीं घबराती थीं कल्पना
पिता बताते हैं कि कल्पना में कभी आलस नहीं था. असफलता से घबराना उसके मन में नहीं था. वह जो ठान लेती उसे बस करके छोड़ती थी. आज कल्पना भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह हम सबके लिए एक मिसाल हैं.
परेरणा .
कथा-कहानी
मोहन काका डाक विभाग के कर्मचारी थे। बरसों से वे माधोपुर और आस पास के गाँव में चिट्ठियां बांटने का काम करते थे।
एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, पता माधोपुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।
रोज की तरह आज भी उन्होंने अपना थैला उठाया और चिट्ठियां बांटने निकला पड़े। सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे।
दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन!”
अन्दर से किसी लड़की की आवाज़ आई, “काका, वहीं दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये।”
“अजीब लड़की है मैं इतनी दूर से चिट्ठी लेकर आ सकता हूँ और ये महारानी दरवाजे तक भी नहीं निकल सकतीं !”, काका ने मन ही मन सोचा।
“बहार आइये! रजिस्ट्री आई है, हस्ताक्षर करने पर ही मिलेगी!”, काका खीजते हुए बोले।
“अभी आई।”, अन्दर से आवाज़ आई।
काका इंतज़ार करने लगे, पर जब 2 मिनट बाद भी कोई नहीं आयी तो उनके सब्र का बाँध टूटने लगा।
“यही काम नहीं है मेरे पास, जल्दी करिए और भी चिट्ठियां पहुंचानी है”, और ऐसा कहकर काका दरवाज़ा पीटने लगे।
कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला।
सामने का दृश्य देख कर काका चौंक गए।
एक 12-13 साल की लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे। उन्हें अपनी अधीरता पर शर्मिंदगी हो रही थी।
लड़की बोली, “क्षमा कीजियेगा मैंने आने में देर लगा दी, बताइए हस्ताक्षर कहाँ करने हैं?”
काका ने हस्ताक्षर कराये और वहां से चले गए।
इस घटना के आठ-दस दिन बाद काका को फिर उसी पते की चिट्ठी मिली। इस बार भी सब जगह चिट्ठियां पहुँचाने के बाद वे उस घर के सामने पहुंचे!
“चिट्ठी आई है, हस्ताक्षर की भी ज़रूरत नहीं है…नीचे से डाल दूँ।”, काका बोले।
“नहीं-नहीं, रुकिए मैं अभी आई।”, लड़की भीतर से चिल्लाई।
कुछ देर बाद दरवाजा खुला।
लड़की के हाथ में गिफ्ट पैकिंग किया हुआ एक डिब्बा था।
“काका लाइए मेरी चिट्ठी और लीजिये अपना तोहफ़ा।”, लड़की मुस्कुराते हुए बोली।
“इसकी क्या ज़रूरत है बेटा”, काका संकोचवश उपहार लेते हुए बोले।
लड़की बोली, “बस ऐसे ही काका…आप इसे ले जाइए और घर जा कर ही खोलियेगा!”
काका डिब्बा लेकर घर की और बढ़ चले, उन्हें समझ नहीं आर रहा था कि डिब्बे में क्या होगा!
घर पहुँचते ही उन्होंने डिब्बा खोला, और तोहफ़ा देखते ही उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे।
डिब्बे में एक जोड़ी चप्पलें थीं। काका बरसों से नंगे पाँव ही चिट्ठियां बांटा करते थे लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।
ये उनके जीवन का सबसे कीमती तोहफ़ा था…काका चप्पलें कलेजे से लगा कर रोने लगे; उनके मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था- बच्ची ने उन्हें चप्पलें तो दे दीं पर वे उसे पैर कहाँ से लाकर देंगे?
दोस्तों, संवेदनशीलता या sensitivity एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है। दूसरों के दुखों को महसूस करना और उसे कम करने का प्रयास करना एक महान काम है। जिस बच्ची के खुद के पैर न हों उसकी दूसरों के पैरों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक बहुत बड़ा सन्देश देती है। आइये हम भी अपने समाज, अपने आस-पड़ोस, अपने यार-मित्रों-अजनबियों सभी के प्रति संवेदनशील बनें…आइये हम भी किसी के नंगे पाँव की चप्पलें बनें और दुःख से भरी इस दुनिया में कुछ खुशियाँ फैलाए