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दैनिक जनचेतना

वर्ष:11,अंक:3,बुधवार,11नवंबर.2020.

  आज का संदेश .

ऐतिहासिक पर्व मनाने का प्रयोजन महापुरूष के प्रति श्रद्धा, उत्साह व उल्लास को प्रक्ट करने की अपेक्षा यदि उन का पुन:मूलयांकन हो, तो समाज के लिए कल्याणकारी होगा। इस से निश्चय ही परिर्वतित काल में उन का नया स्वरूप, महत्व उजागर होगा। भगवान रामचंद्र जी त्रेता युग के अवतार हैं, कलयुग में तो सभी मूल्य बदल चुके हैं। परिवर्तित प्रस्थितियों में वह मात्र पूजा अर्चना के पात्र रह गए हैं। सामाजिक मूल्यों से वह लुपित हैं। उन के आदर्शवाद पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने वालों की कमी नहीँ है। यदि राम जी के कार्यों को पुन:परिभाषित किया जाए तो वह आधुनिक काल के नायक में अवत्रित हो कर समाज में वांछित परिवर्तन लाने का माध्यम बन सकते हैं। घर घर में जय श्री राम के उद्धघोष हेतु ऐसा करना अनिवार्य है।

  पंजाब का इतिहास-3 .

भारत के इतिहास की जानकारी के अनेक साधन उपलब्ध हैं जिन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है-साहित्यिक साधन और पुरातात्विक साधन।

साहित्यिक साधन दो प्रकार के हैं-धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य।

धार्मिक साहित्य भी दो प्रकार के हैं-ब्राह्मण ग्रन्थ और अब्राह्मण ग्रन्थ।

ब्राह्मण ग्रन्थ दो प्रकार के हैं-श्रुति और स्मृति। श्रुति साधनों में वेद, ब्राह्मण, उपनिषद  इत्यादि आते हैं और स्मृति के अन्तर्गत रामायण महाभारत पुराण स्मृतियाँ आदि आती हैं।

लौकिक साहित्य भी चार प्रकार के हैं-ऐतिहासिक साहित्य विदेशी विवरण, जीवनी और कल्पना प्रधान तथा गल्प साहित्य।

प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के प्रमुख साधन साहित्यिक ग्रन्थ हैं जिन्हें दो उपखण्डों में रखा जा सकता है-धार्मिक साहित्य और लौकिक  साहित्य।

  भारतीय़ इतिहास में आज.

11 नवंबर

मुख्य घटनाएँ:

1675 - दिल्ली के चांदनी चौक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया था।

1975 - दक्षिण अफ्रीकी राज्य अंगोला को पुर्तगाल से आजादी मिली।

1809 - केरल में वेलुत्तम्पि ने ब्रिटिश आधिपत्य के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों का आह्वान करते हुए एक घोषणा निकाली जो 'कुण्डरा घोषणा' नाम से जानी जाती है।

1811 - कार्टाहेना कोलंबिया ने स्पेन से खुद को स्वतंत्र घोषित किया।

1943- भारतीय परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर का जन्म।

1982 - इजरायल के सैन्य मुख्यालय में गैस विस्फोट में 60 लोगों की मौत।

1982 - उमाकांत मालवीय, प्रतिष्ठित कवि एवं गीतकार का निधन।

1888 - स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का सऊदी अरब में जन्म।

1888- प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी और राजनीतिज्ञ जे. बी. कृपलानी का हैदराबाद (सिंध) में जन्म।

1918 - पोलैंड स्वतंत्र देश घोषित।1966 - अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अंतरिक्ष यान जेमिनी-12’ प्रक्षेपित किया।

1973 - पहली अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी नयी दिल्ली में शुरू।

1975 - अंगोला को पुर्तग़ाल से आजादी मिली।

2004 - फलस्तीनी नेता एवं फलस्तीनी मुक्ति संगठन के अध्यक्ष यासिर अराफात का 75 साल की उम्र में निधन।

2008 - आधुनिक काल के प्रसिद्ध हिन्दी एवं राजस्थानी लेखक कन्हैयालाल सेठिया का निधन।

कन्हैयालाल सेठिया आधुनिक काल के

प्रसिद्ध हिन्दी व राजस्थानी लेखक थे

कन्हैयालाल सेठिया जन्म- 11 सितम्बर, 1919, चुरू, राजस्थान; मृत्यु- 11 नवम्बर, 2008) आधुनिक काल के प्रसिद्ध हिन्दी व राजस्थानी लेखक थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य रचना पाथल व पीथलहै। राजस्थान में सामंतवाद के ख़िलाफ़ इन्होंने जबरदस्त मुहिम चलायी थी और पिछड़े वर्ग को आगे लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि एवं लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया को अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए थे। भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म श्रीसे भी सम्मानित किया जा चुका है।

जन्म तथा शिक्षा
कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर, 1919 को राजस्थान के चुरू ज़िले में सुजानगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम छगनमलजी सेठिया था तथा माता मनोहरी देवी थीं। कन्हैयालाल जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए इनकी शिक्षा बाधित भी हुई, लेकिन बाद में इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.ए. स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीति और साहित्य इनके प्रिय विषय थे।

विवाह
वर्ष 1937 में कन्हैयालाल सेठिया जी का विवाह धापू देवी के साथ हुआ। इनके दो पुत्र- जयप्रकाश तथा विनयप्रकाश और एक पुत्री सम्पत देवी दूगड़ हैं।[2]

साहित्य चिंतन
कन्हैयालाल सेठिया के समग्र साहित्य में मूल्य बोध है। उनका व्यक्तिगत चिंतन यथार्थवादी है। सत्य को वे क़रीब से महसूस करते थे। दर्शन उनके रोम-रोम में विराजमान था तो वहीं आम आदमी उनके हर वास-उच्छ्वास में निवास करता था। कवि को कन्हैयालाल सेठिया अनुभूति का माध्यम मात्र मानते थे। उनकी रचनाओं में एक दृिष्ट पाठक को मिलती है और पाठक स्वयंमेव उद्योग के प्रति उद्धत हो उठता है। कविवर सेठिया ने कवियों को उद्देश्य युक्त रचनाओं के सृजन की ओर प्रेरित करते हुए कहा है-

रचना वा जिण में दिखै
सिरजणियै री दीठ
नहीं स बोझो सबद रो
लद मत कागद पीठ।

रचनाएँ
कन्हैयालाल जी की अब तक हिन्दी में 18, उर्दू में 02 व राजस्थानी में 14 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। यदि सेठिया जी के सृजन दौर का क्रमिक अध्ययन किया जाए तो शुरुआत राजस्थानी रमणियां रा सोरठां’ (विक्रम संवत 1997) से मानी जा सकती है। इनसे इतर नीमड़ोराजस्थानी की लघु पुस्तिका है। इरामें चुनी हुई कविताएं हैं तो वहीं सप्त किरणसंयुक्त प्रकाशन है। परम वीर शैतानसिंह’, ‘जादूगर माओ’, ‘रक्त दो’, ‘चीन की ललकारआदि लघु कृतियाँ भी सेठियाजी की ही हैं। इन सबके अलावा कन्हैयालाल सेठिया की अनेक रचनाएं अप्रकाशित हैं तथा अनेक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरी पड़ी हैं। उनकी कई रचनाएं विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं।

राजस्थानी
रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूंकंऊ, लीलटांस, धर कूंचा धर मंजळां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क क्को कोड रो, लीकलकोळिया एवं हेमाणी।

हिन्दी
वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निर्ग्रन्थ, स्वागत, देह-विदेह, आकाशा गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति एवं त्रयी।[3]

उर्दू
ताजमहल एवं गुलचीं।

राजद्रोह का मुक़दमा
वर्ष 1942 में जब महात्मा गाँधी ने करो या मरोका आह्वान किया, तब कन्हैयालाल सेठिया की कृति अग्निवीणाप्रकाशित हुई, जिस पर बीकानेर राज्य में इनके ऊपर राजद्रोह का मुक़दमा चला और बाद में राजस्थान सरकार ने इनको स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के रूप में सम्मानित भी किया। महात्मा गाँधी की मृत्यु पर भी कन्हैयालाल जी की एक कृति प्रकाशित हुई थी। इसमें देश बंटवारे के दौरान हुई लोमहर्षक व वीभत्स घटनाओं से जुड़ी रचनाएं संग्रहीत हैं। इसके बाद 1962 में हिन्दी की कृति प्रतिबिम्बका प्रकाशन हुआ। इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। इसकी भूमिका हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने लिखी है।[4]

सम्मान एवं पुरस्कार
स्वतन्त्रता संग्रामी, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि एवं लेखक के नाते कन्हैयालाल सेठिया को अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए.

 अध्यात्मिक .

कर्म सिद्धान्त

कर्म क्या वस्तु है ? भौतिक जगत का आधारभूत नियम कार्य-कारण का नियम है, इस बात को तो प्रत्येक व्यक्ति जानता है. कोई कार्य ऎसा नहीं हो सकता जिसका कारण न हो और न ही कोई कारण ऎसा हो सकता है कि जिसका कोई कार्य न हो. यही कार्य-कारण का सिद्धान्त जब भौतिक जगत के स्थान पर आध्यात्मिक जगत में काम कर रहा होता है, तो इसे कर्म का सिद्धान्त कहते है. कार्य-कारण के भौतिक नियम का अध्यात्मिक रूप ही "कर्म" है.
कार्य-कारण का नियम भौतिक जगत का एक अटल नियम है. कारण उपस्थित होगा तो कार्य होकर रहेगा. किसी बात की सुनवाई नहीं; कोई रियायत नहीं. पत्थर से टक्कर होगी तो चोट लगेगी ही, अग्नि में हाथ डालोगे तो हाथ जलेगा ही, पानी में कपडा गिरेगा तो गीला अवश्य होगा---यह निर्दय, निर्मम कार्य-कारण का नियम विश्व का संचालन कर रहा है. इस नियम से ही सूर्य उदित होता है, चन्द्रमा अपनी रश्मियों का विस्तार करता है, पृ्थ्वी अपनी परिधि पर घूमती है, समुद्र में ज्वार-भाटा आता है. अवश्यंभावी तो कार्य-कारण के नियम की आत्मा है. कारण का अर्थ अवश्यंभावी है, उसे टाला नहीं जा सकता.
"
अवश्यंभाविता" के साथ कार्य-कारण का नियम एक "चक्र" में चलता चला जाता है. कारण कार्य को उत्पन करता है, यह कार्य फिर कारण बन जाता है, अपने से अगले कार्य को उत्पन कर देता है---ओर इस प्रकार प्रत्येक कारण अपने से पिछले का कार्य और अगले का कारण बनता चला जाता है, और यह प्रवाह सृ्ष्टि का अनन्त प्रवाह बन जाता है. बीज वृ्क्ष को जन्म देता है और यह परम्परा अनन्त की ओर मुख किए आगे ही आगे बढती चली जाती है.
अब क्यों कि "कर्म" का सिद्धान्त कार्य-कारण का ही सिद्धान्त है इसलिए "कर्म" में भी कार्य-कारण की दोनों बातें अवश्यंभाविता और चक्रपना पाई जाती हैं. प्रत्येक "कर्म" का फल अवश्य भोगना पडता है----यह "अवश्यंभाविता" है. प्रत्येक कर्म का फल फल ही न रहकर स्वयं एक कर्म बन जाता है---यह "चक्र" है. "कर्म" का "चक्र" कैसे चलता है ? हमें किसी नें मारा, यहाँ ये फल है या "कर्म" है या कार्य है या कारण है ? या तो यह हमें अपने किसी कर्म का फल मिला है या जिसनें हमें मारा उसनें एक नया "कर्म" किया, एक नए कारण को उत्पन किया जिसका उसे फल मिलना है. अगर हमें "फल" मिला है तो यह किसी कारण का कार्य है और अगर हम थप्पड खाकर चुप रह जाएं, गुस्सा तक न करें तो फल शान्त हो जाए और अगली कार्य-कारण परम्परा को खडा न करे. परन्तु ऎसा नहीं होता. हमें किसी नें मारा तो हम उसका बदला अवश्य लेंगें, सीधे थप्पड का जवाब थप्पड से न दे सकेंगें, तो दूसरे किसी उपाय को सोचेंगें. अगर और कुछ नहीं तो बैठे बैठे मन में ही संकल्प, विकल्पों का ताना बाना बुनने लगेंगें. नतीजा यह हुआ कि अगर यह फल था, किसी पिछले कारण का कार्य था तो भी यह सिर्फ कार्य या फल न रहकर फिर से कारण बन जाता है और अगले कार्य के चक्कर को चला देता है. और अगर यह फल नहीं था, एक नया कारण था, जिसनें हमें थप्पड मारा उसका एक नया ही कर्म था, तब तो कार्य-कारण के नियम के अनुसार इसका फल मिलना ही है----इससे भी चक्र का चल पडना स्वाभाविक ही है. हर हालत में प्रत्येक "कर्म"----चाहे वह कारण हो या कार्य---एक नए चक्र को चला देता है, और प्रत्येक कर्म पिछले कर्म का कार्य और अगले कर्म का कारण बनता चला जाता है. इस प्रकार यह "आत्म-तत्व" कर्मों के एक ऎसे जाल में बँध जाता है जिसमें से निकलने का कोई उपाय नहीं सूझता. इसमें से निकलने का हर झटका एक दूसरी गाँठ बाँध देता है, और जितनी गाँठ खुलती जाती है उतनी ही नईं गाँठ पडती भी जाती है.     

   परेरणा .

आखिरी काम ...

एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें .

ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .

जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा .

मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला .

कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया . पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चलाऊ तरीके से ये सब करने लगा . कुछ एक हफ्तों में घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहुंचा , ” ठेकेदार साहब , मैंने घर तैयार कर लिया है , अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?”

ठेकेदार बोला हाँ , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की ज़रुरत नहीं है , क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है; जाइये अपने परिवार के साथ उसमे खुशहाली से रहिये !”.