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दैनिक जनचेतना

वर्ष:11,अंक:6,मंगलवार,17नवंबर.2020.

 आज का संदेश .

इच्छा हो, ना हो, जीवन जीने, इस की आवश्यताओं की पूर्ति हेतु समाज से तो जुड़ना ही होगा। जन्म के समय मनुष्य श्वास लेता मास का टुकड़ा मात्र ही होता है। यदि उस का परिवार, समाज की ही एक इकाई, उस का लालन पालन ना करे तो शायद वह जीवित भी ना बचे। पशुओं की भाँति यदि जीवित रह भी जाए, तो खाने, पीने, रहने हेतु तो उसे समाज की आवश्यकता रहेगी ही। यदि समाज में रहना ही है, तब क्यों ना ऐसे समाज का निर्माण किया जाए जो प्रत्येक का ध्यान रखे, दुख सुख में सहाय़ता करे और इच्छा से जीने में बाधा भी ना बने। परन्तु ऐसा तभी संभव है यदि हम सभी समाजिक बने, इस में दिलचस्पी लें, सम्बन्धित कार्यों में सक्रिय हों।

 भारत का इतिहास-8 .

वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं की गद्य टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता है। पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं। ऐतरेय के अध्ययन से राज्याभिषेक तथा अभिषिक्त नृपतियों के नामों का ज्ञान प्राप्त होता है। शथपथ के एक सौ अध्याय भारत के पश्चिमोत्तर के गान्धार, शाल्य तथा केकय आदि और प्राच्य देश, कुरु, पांचाल, कोशल तथा विदेह के संबंध में ऐतिहासिक कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं। राजा परीक्षित की कथा ब्राह्मणों द्वारा ही अधिक स्पष्ट हो पायी है।

उपनिषदों  में बृहदारण्यकतथा छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इन ग्रन्थों से बिम्बिसार के पूर्व के भारत की अवस्था जानी जा सकती है। परीक्षित, उनके पुत्र जनमेजय तथा पश्चातकालीन राजाओं का उल्लेख इन्हीं उपनिषदों में किया गया है। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था। आर्यों के आध्यात्मिक विकास प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं।

  भारतीय़ इतिहास में आज.

17 नवंबर

मुख्य घटनाएँ:

1869: दस साल के निर्माण कार्य के बाद स्वेज नहर को यातायात के लिए खोल दिया गया. यह नहर यूरोप को एशिया से जोड़ता है.

1928: स्‍वतंत्रता सेनानियों में शुमार और पंजाबी लेखक लाला लाजपत राय शहीद हुए थे.

1939: नाजियों ने प्राग यूनिवर्सिटी में दाखिल होकर छात्रों को मौत के घाट उतार दिया था. उन बच्‍चों की याद में 17 नवंबर के दिन इंटरनेशनल स्‍टूडेंट डे मनाया जाता है.

1986: इसी दिन फ़्रांसीसी कार कंपनी रेनॉ के प्रमुख ज्यॉर्जिस बेस की पेरिस में हत्या कर दी गई थी. उनके हत्यारे एक मोटरसाइकिल पर आए और उन्होंने उनके घर के सामने ही उन पर गोलियां चलाईं.

1997: दक्षिणी मिस्र में 68 विदेशी सैलानी तब मारे गए जब चरमपंथियों ने सैलानियों की बस पर हमला किया.

2012: कार्टून के स्‍केच से लेकर सियासत के मैदान में अपनी सशक्‍त पहचान बनाने वाले शिवसेना के संस्‍थापक बाल ठाकरे का निधन हुआ था.

शिवसेना के संस्‍थापक बाल ठाकरे

लगभग 46 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहे शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने कभी न तो कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया. यहां तक कि उन्हें विधिवत रूप से कभी शिवसेना का अध्यक्ष भी नहीं चुना गया था.

लेकिन इन सब के बावजूद महाराष्ट्र की राजनीति और ख़ासकर इसकी राजधानी मुंबई में उनका ख़ासा प्रभाव था. उनका राजनीतिक सफ़र भी बड़ा अनोखा था. वो एक पेशेवर कार्टूनिस्ट थे और शहर के एक अख़बार फ़्री प्रेस जर्नल में काम करते थे. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना का निर्माण किया और 'मराठी मानुस' का मुद्दा उठाया. उस समय नौकरियों का अभाव था और बाल ठाकरे का दावा था कि दक्षिण भारतीय लोग मराठियों की नौकरियां छीन रहे हैं. उन्होंने मराठी बोलने वाले स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया.

मुंबई (उस समय मुंबई को बम्बई कहा जाता था) स्थित कंपनियों को उन्होंने निशाना बनाया था लेकिन दरअसल उनका ये अभियान मुंबई में रह रहे दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ था क्योंकि शिवसेना के अनुसार जो नौकरियां मराठियों की हो सकती थी उन पर दक्षिण भारतीयों का क़ब्ज़ा था.

बाल ठाकरे का तर्क था कि जो महाराष्ट्र के लोग हैं उन्हें नौकरी मिलनी चाहिए. इस मुद्दे को मराठियों ने हाथों-हाथ लिया. शिवसेना पर राजनीति में हिंसा और भय के इस्तेमाल का बार-बार आरोप लगा.

लेकिन बाल ठाकरे का कहना था, "मैं राजनीति में हिंसा और बल का प्रयोग करूंगा क्योंकि वामपंथियों को यही भाषा समझ आती है और ये कुछ लोगों को हिंसा का डर दिखाना चाहिए तब ही वो सबक़ सीखेंगे."

दक्षिण भारतीयों के व्यवसाय, संपत्ति को निशाना बनाया गया और धीरे-धीरे मराठी युवा शिवसेना में शामिल होने लगे. बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी का नाम शिवसेना 17वीं सदी के एक जाने माने मराठा राजा शिवाजी के नाम पर रखा था. शिवाजी मुग़लों के खिलाफ लड़े थे.

बाल ठाकरे ने ज़मीनी स्तर पर अपनी पार्टी का संगठन बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया. राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, आप्रवासियों और यहां तक कि मीडियाकर्मियों पर शिवसैनिकों के हमले आम बात हो गई थी. धीरे-धीरे मुंबई के हर इलाक़े में स्थानीय दबंग युवा शिवसेना में शामिल होने लगे.

एक 'गॉडफॉदर' की तरह बाल ठाकरे हर झगड़े सुलझाने लगे. लोगों को नौकरियां दिलवाने लगे और उन्होंने आदेश दे दिए कि हर मामले में उनकी राय ली जाए. यहां तक की फ़िल्मों के रिलीज़ में भी उनकी मनमानी चलने लगी.

दक्षिण भारतीयों के व्यवसाय, संपत्ति को निशाना बनाया गया और धीरे-धीरे मराठी युवा शिवसेना में शामिल होने लगे. बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी का नाम शिवसेना 17वीं सदी के एक जाने माने मराठा राजा शिवाजी के नाम पर रखा था. शिवाजी मुग़लों के खिलाफ लड़े थे.

बाल ठाकरे ने ज़मीनी स्तर पर अपनी पार्टी का संगठन बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया. राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, आप्रवासियों और यहां तक कि मीडियाकर्मियों पर शिवसैनिकों के हमले आम बात हो गई थी. धीरे-धीरे मुंबई के हर इलाक़े में स्थानीय दबंग युवा शिवसेना में शामिल होने लगे.

एक 'गॉडफॉदर' की तरह बाल ठाकरे हर झगड़े सुलझाने लगे. लोगों को नौकरियां दिलवाने लगे और उन्होंने आदेश दे दिए कि हर मामले में उनकी राय ली जाए. यहां तक की फ़िल्मों के रिलीज़ में भी उनकी मनमानी चलने लगी.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शुरूआती दौर में सत्ताधारी कांग्रेस ने शिवसेना को या तो नज़रअंदाज़ किया या फिर कई मामलों में तो वामपंथियों जैसे अपने राजनीतिक विरोधियों को समाप्त करने के लिए शिवसेना को प्रोत्साहित किया.

लेकिन 80 के दशक के दौरान शिवसेना एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई थी जो राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रही थी. इस दौरान बाल ठाकरे ने दक्षिणपंथी वोटरों को लुभाने के लिए हिंदुत्व का दामन थाम लिया.

1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के बाद मुंबई में हिंदु और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे हुए जो कई हफ़्तों तक चले. इन दंगों में शिवसेना और बाल ठाकरे का नाम बार-बार लिया गया. दंगों में कुल 900 लोग मारे गए थे. सैंकड़ों लोगों ने दंगों के बाद मुंबई छोड़ दी और फिर कभी लौट कर नहीं आए.

उन्होंने कट्टर हिंदुत्व और पाकिस्तान के प्रति जो कट्टरवादी रवैया अपनाया उससे भी समाज के कुछ वर्गों में उन्हें समर्थन मिला. उन्होंने मुसलमानों के विरोध में वकत्व्य दिए. कट्टर हिंदुत्व की बात की. भारत-पाक क्रिकेट पर भी कड़ा रुख अपनाया.

सिर्फ़ तीन साल के बाद शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी मिलकर राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल हो गए. बाल ठाकरे ने अपने एक बहुत ही क़रीबी नेता को मुख्यमंत्री बनाया और सत्ता की चाबी ख़ुद अपने पास रखी.

पिछले एक दशक में शिवसेना का अभियान उत्तर भारत से मुंबई आए आप्रवासियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो गया.

ठाकरे एक अच्छे वक्ता थे और लोगों को अपनी मज़ेदार बातों से ख़ूब आकर्षित करते थे. मुंबई के शिवाजी पार्क में दशहरा के अवसर हर साल होने वाले उनके भाषण का उनके समर्थकों को ख़ूब इंतज़ार रहता था.

ज़िंदगी के आख़िरी बरस वो ख़राब स्वास्थ के कारण शिवाजी पार्क तो नहीं जा सके लेकिन अपने समर्थकों के लिए उन्होंने वीडियो रिकॉर्डेड संदेश भेजा जिसमें उन्होंने अपने चाहने वालों से अपील की थी कि वे उनके पुत्र और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को उतना ही प्यार और सम्मान दें जितना उन्होंने बाल ठाकरे को दिया था.

 परेरणा .

संस्कार

बेटा तुम्हारा इन्टरव्यू लैटर आया है। मां ने लिफाफा हाथ में देते हुए कहा।

यह मेरा सातवां इन्टरव्यू था। मैं जल्दी से तैयार होकर दिए गए नियत समय 9:00 बजे पहुंच गया। एक घर में ही बनाए गए ऑफिस का गेट खुला ही पड़ा था मैंने बन्द किया भीतर गया।

सामने बने कमरे में जाने से पहले ही मुझे माँ की कही बात याद आ गई बेटा भीतर आने से पहले पांव झाड़ लिया करो।फुट मैट थोड़ा आगे खिसका हुआ था मैंने सही जगह पर रखा पांव पोंछे और भीतर गया।

एक रिसेप्शनिस्ट बैठी हुई थी अपना इंटरव्यू लेटर उसे दिखाया तो उसने सामने सोफे पर बैठकर इंतजार करने के लिए कहा। मैं सोफे पर बैठ गया, उसके तीनों कुशन अस्त व्यस्त पड़े थे आदत के अनुसार उन्हें ठीक किया, कमरे को सुंदर दिखाने के लिए खिड़की में कुछ गमलों में छोटे छोटे पौधे लगे हुए थे उन्हें देखने लगा एक गमला कुछ टेढ़ा रखा था, जो गिर भी सकता था माँ की व्यवस्थित रहने की आदत मुझे यहां भी आ याद आ गई,  धीरे से उठा उस गमले को ठीक किया।

तभी रिसेप्शनिस्ट ने सीढ़ियों से ऊपर जाने का इशारा किया और कहा तीन नंबर कमरे में आपका इंटरव्यू है।

मैं सीढ़ियां चढ़ने लगा देखा दिन में भी दोनों लाइट जल रही है ऊपर चढ़कर मैंने दोनों लाइट को बंद कर दिया तीन नंबर कमरे में गया ।

वहां दो लोग बैठे थे उन्होंने मुझे सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और पूछा तो आप कब ज्वाइन करेंगे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जी मैं कुछ समझा नहीं इंटरव्यू तो आप ने लिया ही नहीं।

इसमें समझने की क्या बात है हम पूछ रहे हैं कि आप कब ज्वाइन करेंगे ? वह तो आप जब कहेंगे मैं ज्वाइन कर लूंगा लेकिन आपने मेरा इंटरव्यू कब लिया वे दोनों सज्जन हंसने लगे।

उन्होंने बताया जब से तुम इस भवन में आए हो तब से तुम्हारा इंटरव्यू चल रहा है, यदि तुम दरवाजा बंद नहीं करते तो तुम्हारे 20 नंबर कम हो जाते हैं यदि तुम फुटमेट ठीक नहीं रखते और बिना पांव पौंछे आ जाते तो फिर 20 नंबर कम हो जाते, इसी तरह जब तुमने सोफे पर बैठकर उस पर रखे कुशन को व्यवस्थित किया उसके भी 20 नम्बर थे और गमले को जो तुमने ठीक किया वह भी तुम्हारे इंटरव्यू का हिस्सा था अंतिम प्रश्न के रूप में सीढ़ियों की दोनों लाइट जलाकर छोड़ी गई थी और तुमने बंद कर दी तब निश्चय हो गया कि तुम हर काम को व्यवस्थित तरीके से करते हो और इस जॉब के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार हो, बाहर रिसेप्शनिस्ट से अपना नियुक्ति पत्र ले लो और कल से काम पर लग जाओ।

मुझे रह रह कर माँऔर बाबूजी की यह छोटी-छोटी सीखें जो उस समय बहुत बुरी लगती थी याद आ रही थी।

मैं जल्दी से घर गया मां के और बाऊजी के पांव छुए और अपने इस अनूठे इंटरव्यू का पूरा विवरण सुनाया.

इसीलिए कहते हैं कि व्यक्ति की प्रथम पाठशाला घर और प्रथम गुरु माता पिता ही है।