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दैनिक जनचेतना

वर्ष:11,अंक:13,शुक्रवार,27नवंबर.2020.

   आज का संदेश .

न्यूनतम आवश्यक्ताओं की पूर्ति के अभाव में मनुष्य विभिन्न रोगों से ग्रस्त जाता है। कुपोष्ण का शिकार बालक जीवन को बोझ की तरह ढोते हैं। कमजोर शरीर, मुरझाए चेहरे लिए यह मनुष्य जीवन की खूबसूरती व प्रत्येक खुशी से वंचित रहते हैं। अपनी और अपने ऊपर निर्भर व्यक्तियों की आवश्यक्ताएँ पूरी ना कर पाने का दुख उन्हें परेशान किए रहता है। कई आत्महत्या की ओर अग्रसर होने को विवश हो  जाते हैँ। अधिक निराश आतंकवाद के पथ पर समस्त मानवता की खुशियाँ छीनने लगते हैं। इस समस्या का एकमात्र समाधान मनुष्य की न्यूनतम आवश्यक्ताओं को उस का मौलिक अधिकार बनाना है। इन की पूर्ति समाज का ही ध्येय होना चाहिए। जो जन्म ले, उसे खाने, वस्त्र और गृहस्थान की चिंता नहीं ही होनी चाहिए।

 भारत का इतिहास-16.

प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जैन ग्रन्थ भी उपयोगी हैं। जैन धर्म ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। भगवान महावीर ने सिर्फ प्रवचन ही दिए। उन्होंने कोई ग्रंथ नहीं रचा, लेकिन बाद में उनके गणधरों ने, प्रमुख शिष्यों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया। यह संग्रह मूलत: प्राकृत भाषा में है विशेष रूप से मागधी में। ये प्रधानतः धार्मिक हैं। इन ग्रन्थों में परिशिष्ट पर्वतविशेष महत्वपूर्ण हैं। भद्रबाहु चरित्रदूसरा प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ है जिसमें जैनाचार्य भद्रबाहु के साथ-साथ चन्द्रगुप्त मौर्य के संबंध  में भी उल्लेख मिलता है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त कथा-कोष, पुण्याश्रव-कथाकोष, त्रिलोक प्रज्ञस्ति, आवश्यक सूत्र, कालिका पुराण, कल्प सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र आदि अनेक जैन ग्रन्थ भारतीय इतिहास की सामग्रियां प्रस्तुत करते हैं। इन के अतिरिक्त दीपवंश, महावंश, मिलन्दिपन्होदिव्यावदान आदि ग्रन्थ की इन दोनों धर्मों तथा मौर्य साम्राज्य के संबंध में यत्र-तत्र उल्लेख करते हैं।

 भारतीय़ इतिहास में आज.

27 नवंबर

मुख्य घटनाएँ:

1795 को पहले बांग्ला नाटक का मंचन हुआ था।

1932 को पोलैंड और तत्कालीन सोवियत संघ ने अनाक्रमण समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

1947 को पेरिस में पुलिस ने कम्युनिस्ट समाचार-पत्र के कार्यालय पर कब्जा किया था।

1966 को उरुग्वे ने संविधान अपनाया था।

2008 को छठा वेतन आयोग देने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बना था।

छठा वेतन आयोग

बढ़ी हुई तन्ख्वाह जनवरी 2006 से मिलेगी यानी छठा वेतन आयोग उसी वक्त से लागू माना जाएगा. इस दौरान का बकाया वेतन अलग अलग किस्तों में दिया जाएगा. 40 फीसदी इसी वित्त वर्ष में कर्मचारियों को मिल जाएगा और बाकी 60 फीसदी अप्रैल 2009 से शुरू हो रहे अगले वित्त वर्ष में मिलेगा.

जस्टिस बी. एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में छठे वेतन आयोग ने मार्च में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी थीं जिसके मुताबिक केंद्र सरकार और सेना के सभी कर्मचारियों के वेतन में औसतन 28 फीसदी के इजाफे की सिफारिश की थी.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को अपने खास मंत्रियों से बातचीत की. इस बैठक में विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी, रक्षा मंत्री ए के एंटनी और वित्त मंत्री पी चिदंबरम शामिल थे.

इसके बाद सूचना और प्रसारण मंत्री प्रिय रंजन दास मुंशी ने गुरुवार को बताया कि सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्रीय कर्मचारियों का बेसिक वेतन कम से कम 7000 रुपये होगा. समझा जाता है कि इसके सरकार पर लगभग 22 अरब रुपयों का बोझ बढ़ेगा.

दासमुंशी ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे तो अपने भाषण में इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.

वेतन में इजाफा फिलहाल सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों पर लागू होगा, लेकिन आम तौर पर केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन बढ़ने के बाद राज्य सरकारें भी अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ा देती हैं.

 परेरणा .

नर्मदा-2

नर्मदा के प्रमुख तीर्थ स्थल 

सूरजकुण्ड

यह नर्मदा का उद्गम स्थल है। इसके आसपास कई मंदिर बने हैं।

प्रथम समूह के मंदिर
कर्ण मंदिर, मत्स्येन्द्र मंदिर, नर्मदा माई का मंदिर एवं पातालेश्वर मंदिर प्रथम समूह के मंदिरों में प्रमुख है। द्वितीय समूह के मंदिरों में कुछ नये हैं या जिनके ध्वंसावशेष हैं, इनका पुरातत्वीय महत्व नगण्य है।

अमरकण्टक
मत्स्य पुराण में अमरकंटक के बारे में कहा गया है कि यह पवित्र पर्वत सिद्धों और गन्धर्वों द्वारा सेवित है। जहाँ भगवान शंकर देवी उमा के सहित सर्वदा निवास करते हैं। अमरकण्टक का इतिहास छह सहस्त्र वर्ष पुराना है। जब सूर्यवंशी सम्राट मान्धाता ने ऋक्ष पर्वत की घाटी में मान्धाता नगरी बसाई थी। यहाँ के मंदिरों की स्थापत्य कला चेदि और विदर्भकाल की है। वर्तमान में नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकण्टक जो कि समुद्र तल से 1070 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, शहडोल जिला और नवनिर्मित छत्तीसगढ़ के छोर पर अवस्थित है। शहडोल जिले के पेंड्रा रेल्वे स्टेशन से 44 किलोमीटर दूर अमरकण्टक स्थित है। स्कंद पुराण रेवाखण्ड के अनुसार अमरकण्टक का अर्थ देवताओं का शरीर है।
अमरा देवता प्रोक्ता शरीरं कट उच्चते।

अमरा देवता प्रोक्ता शरीरं कट उच्चते।

अमरकण्टक इत्याते तेन प्रोक्ते महीर्षिभिः।।
अमरकण्टक को ऋक्ष पर्वत का एक भाग कहा गया है। अमरकण्टक को सिद्ध क्षेत्र में भी ज्यादा पावन माना गया है। वास्तव में पूरा पर्वत ही सिद्ध क्षेत्र है महाभारत के वन पर्व में उल्लेखित है कि-अमरकण्टक की यात्रा से अश्वमेघ का फल प्राप्त होता है।
शोणस्य नर्मदायाश्च प्रभवे कुरुनन्दन।
वंश गुल्म उपस्पृश्य बाजिमेघ फल लभेत।।

महर्षि अगस्त्य ने यहाँ आर्य सभ्यता का प्रचार-प्रसार किया। अमरकण्टक को ओंकारपीठ भी माना जाता है। साल वृक्षों के सघन वन से आच्छादित अमरकण्टक धार्मिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पुरातत्वीय एवं प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यहां कीचक की प्रतिमा (जो कलकत्ता म्युजियम में है) विराट मंदिर के भग्नावशेष, शमी वृक्ष बाणगंगा के 366 तालाबों की प्राप्ति, अर्जुन के बाण से उत्पन्न बाण गंगा, सूर्यवंशी राजा राजमीर के अजीमीर महल के पुरावशेष, प्रतिहार वंशी महिपाल द्वारा 914 से 944 . के बीच नर्मदा तथा अमरकण्टक की मेखला की विजयश्री आदि में इसकी प्राचीनता के प्रमाण मिलते हैं।
अमरकण्टक विंध्य शिरोमणि है यह विन्ध्याचल का सर्वोच्च शिखर है। इसका प्राचीन नाम मैकल था। इसी कारण नर्मदा को मैकलसुता भी कहा जाता है। अमरकण्टक से सोन, महानदी, और ज्वालावती नदियों की उत्पत्ति हुई है। अमरकण्टक केवल नर्मदा की जन्मस्थली ही नही है अपितु यह भारतीय दर्शन, आध्यात्म, संस्कृति और संस्कारों का संगम भी है।
ऋषि अगस्त्य और पर्वतराज विन्ध्याचल के संबंध में एक कथा है जो महाभारत के एतत् आख्यान के नाम से प्रसिद्ध है। यह महर्षि अगस्त्य के महात्म को उद्धरित करती है, इस कथा का कालिदास ने रघुवंश में और देवी भागवत में भी वर्णन मिलता है।
कथा इस प्रकार है- विन्ध्याचल ने एक दिन सूर्य से कहा कि- हे सूर्य! जैसे तुम प्रतिदिन मेरू की प्रदक्षिणा करते है वैसे ही हमारी प्रदक्षिणा करो। तब सूर्य ने कहा कि मैं अपनी इच्छा से नहीं वरन मेरा निश्चित मार्ग होने के कारण मै मेरू की परिक्रमा करता हूँ। इतना सुनते ही विन्ध्य आगबबूला ही गया और उसने सूर्य-चन्द्रमा के पथ को रोकने हेतु अपने वदन को बढ़ाकर ऊँचा उठाने लगा। देवता उसके पास विनती करने आये परन्तु हठधर्मिता के कारण वह अपनी मनमानी करने लगा। तब समस्त देवतागण अगस्त्य ऋषि के पास दुःखी होकर गये और प्रार्थना करने लगे कि हे द्विजोत्तम! पर्वतराज विन्ध्य क्रोध के वशीभूत होकर सूर्य-चन्द्र और नक्षत्रों के मार्ग को रोकना चाहते हैं। हे महाभाग! आपके अतिरिक्त उन्हें और कोई नहीं रोक सकता। इसलिए कृपाकर उन्हें रोकिये।
महर्षि अगस्त्य ने देवताओं की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और अपनी पत्नी लोपामुद्रा के साथ विन्ध्याचल पर्वत के पास जाकर बोले- हे गिरि श्रेष्ठ! हम विशेष कार्य से दक्षिण जाना चाहते हैं, इसलिए हमें जाने के लिए मार्ग दो और जब तक हम लौट आये तब तक ऐसे ही हमारी प्रतीक्षा करते रहो। जब मैं जाउं तब तुम इच्छानुसार अपने को बढ़ाना।इस प्रकार विन्ध्य गुरू की आज्ञा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि आज भी नतमस्तक होकर उनकी प्रतिक्षा कर रहा है लेकिन गुरू अगस्त्य आज तक नहीं लौटे।
अद्यापि दक्षिणोदे्शात वारूणिर्न निर्वतते
अर्थात आज भी अगस्त्य दक्षिण से लौटते दिखाई नहीं देते।
(
शेष-कल)