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दैनिक जनचेतना

वर्ष:11,अंक:16,मंगलवार,02दिसमबर.2020.

 आज का संदेश .

मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति को उस का मौलिक अधिकार मानने का विचार नया नहीं है। मानव संस्कृति के प्रत्येक पड़ाव पर कोई ना कोई गौतम अवश्य हुआ है जिस ने बेकसूर, समय की चक्की में पिस रहे मनुश्य की पीड़ा को महसूस किया और इस को विरूद्ध आवाज ऊठाई। जन्म से मरने तक मनुष्य प्रतिदिन किसी नई मुसीबत से घिरा रहता है।

जीने के लिए आवश्यक्ताएँ बहुत कम होती हैं परन्तु सभ्य दिखने के लालच ने उन्हें असीमित लिया गया है और प्रत्येक की पूर्ति के लिये अनेक पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसा करते समय कुछ तो महलों के स्वामी बन जाते हैं जब कि अन्य पेट भरने के योग्य भी नहीं रहते।

दरिद्रों प्रति दया, हमदर्दी, करूणा की भावनाओं से दान की शुरूआत हुई। पेट भरने और नंगेज ढांपने हेतु गरीब दानियों के दर पर जाने लगे। उन्होंने भूखों को खाना खिलाने तथा नंगों को वस्त्र देने में देरी नहीं की। दान पुन्न से उन की ख्याति को चार चाँद लगते थे, आदर मान में वृद्धि होती थी परन्तु मांगना तो अनेक दुष्कर्मों का कारण होता है। दानियों की तो स्दैव उस्तति ही हुई है परन्तु भिखारी को किसी ने अच्छा नहीँ कहा, उस की निंदा ही हुई है।

मनुष्य के मान सम्मान के लिए आवश्यक है कि उस की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति को उस का मौलिक अधिकार मान लिया जाए।

 भारत का इतिहास-18.

भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्धागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।

भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वायंभुव मनु व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने  वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।

 भारतीय़ इतिहास में आज.

02 दिसंबर

मुख्य घटनाएँ:

1988 को बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान की प्रधानमंत्री का पद संभाला था।

1989 को विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के 7वें प्रधानमंत्री बने थे।

1995 बेरिंग्स बैंक कांड के चर्चित व्यक्ति निक लीसन को सिंगापुर के न्यायालय द्वारा साढ़े छह वर्ष की क़ैद की सज़ा हुई थी।

1999 को भारत में बीमा क्षेत्र में प्राइवेट क्षेत्र के निवेश को मंजूरी मिली था।

विश्वनाथ प्रताप सिंह

मांडा के 41वें राजा बहादुर और देश के आठवें प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय को बहस का मुद्दा बनाने के निमित्त बने, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी फर्क आए। प्रधानमंत्री पद पर रहते गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाने के लिए आतंकवादियों की रिहाई, रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला उन्हें कई बार सुर्खियों में ले आया। विश्वनाथ प्रताप सिंह को देश की राजनीति को एक नया कलेवर देने का श्रेय दिया जाता है।

सेंटर फार स्टडीज आफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के राजनीतिक विश्लेषक आदित्य निगम के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी फर्क आए। इससे एक ओर जहां संसद का चेहरा बदल गया वहीं राजनीति आम लोगों की ओर अग्रसर हुई। संसद में पहले आक्सफोर्ड और अन्य प्रसिद्ध विदेशी संस्थाओं में पढ़ाई कर राजनीति में आने वाले अंग्रेजीदां लोगों की प्रमुखता थी, उसमें बदलाव आया और भारतीय भाषाओं में बातचीत करने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। निगम के अनुसार जिन क्षेत्रों में पिछडे़ और समाज के अन्य वर्ग का प्रवेश आसान नहीं था, विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों के कारण वहां भी उनकी पहुंच सुगम हो गई। मंडल मुद्दे के कारण पहली बार सामाजिक न्याय बहस का मुद्दा बना और सवर्ण वर्चस्व में कमी आई। निगम का मानना है कि सामाजिक न्याय के लिए सुगबुगाहट पहले से ही चल रही थी और विश्वनाथ प्रताप निमित्त मात्र थे। जनता पार्टी की स्थापना, मंडल आयोग का गठन, राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनना आदि बताते हैं कि उदय पहले से हो रहा था लेकिन सिंह ने उसे एक मोड़ प्रदान किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
, वाराणसी में राजनीति विज्ञान में प्राध्यापक आरपी पाठक के अनुसार विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों का असर भारतीय राजनीति में दलित और अत्यंत पिछड़े वर्ग की स्थित पिर स्पष्ट दिखता है। पाठक के अनुसार भारत में समतामूलक समाज की बात 1930 से ही की जा रही थी और 1932 में दक्षिण भारत में एक आंदोलन भी चला था। लेकिन सामाजिक स्तर पर आर्थिक या संरचनात्मक सुधार नहीं हो पाया। पाठक का मानना है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजनीति में अभिनव प्रयोग किया। उनके प्रयासों के कारण राजनीति आम लोगों की ओर गई और राजनीतिक चेतना बढ़ी। उसी का नतीजा है कि अत्यंत पिछड़े वर्ग 'पावर ब्लाक' बन कर उभरे और राजनीति में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी।

उल्लेखनीय है कि 25 जून 1931 को सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश में दहिया राज परिवार में हुआ था। बाद में मांडा के नरेश ने उन्हें गोद लिया था और वह मांडा के नरेश भी बने। वह नेहरू युग में राजनीति में आए और कांग्रेस से जुड़ गए। बाद में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। उप्र में उनके मुख्यमंत्री काल में दस्यू उन्मूलन अभियान काफी चर्चा में रहा।

वीपी के नाम से मशहूर सिंह 1980 और 1990 के दौर में विभिन्न कारणों से बार−बार राष्ट्रीय सुर्खियों में प्रमुखता से बने रहे। राजीव गांधी सरकार में उन्होंने वित्त और रक्षा मंत्रालय के रूप में अपना रसूख बहुत बढ़ा लिया। वीपी बाद में राजीव गांधी के साथ मतभेद होने के पश्चात कांग्रेस से अलग हो गए। इसी के साथ उन्होंने बोफोर्स तोप सौदे के मामले में देश में एक जबर्दस्त राजनीतिक तूफान पैदा कर दिया। इसी अभियान के चलते मिली सफलता से उन्होंने 1989 के संसदीय चुनाव के बाद भाजपा और वामदलों के सहयोग से केंद्र में सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का फैसला किया जो भारतीय राजनीति में 'निर्णायक मोड़' साबित हुआ। इसी दौरान आरक्षण विरोधी अभियान के बारे में उनके रुख के कारण वह समाज के एक वर्ग में अलोकप्रिय भी हुए।

प्रधानमंत्री पद से हटने के कुछ ही समय बाद भले ही उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया लेकिन जब भी देश में तीसरे विकल्प का कोई प्रयास किया गया, वीपी हमेशा अग्रिम पंक्ति में दिखाई दिए। राजनीति के अलावा वीपी के व्यक्तित्व का रचनात्मक पक्ष उनकी कविताओं और चित्रकला के माध्यम से सामने आता है। अपनी कविताओं में वह एक बौद्धिक लेकिन संवेदनशील रचनाकार के रूप में गहरी छाप छोड़ते हैं। गुर्दे और कैंसर से लंबे समय तक जूझने के बाद वीपी का 27 नवंबर 2008 को निधन हुआ।

 परेरणा .

नर्मदा के किनारे बसे

महत्वपूर्ण स्थान:(4)
जबलपुर

जबलपुर मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी है जो नर्मदा के किनारे स्थित है। इसका प्राचीन नाम जावालि पट्टनथा। यह 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित है।
भेड़ा घाट
जबलपुर से 13 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट स्थित है। यह प्रकृति का एक शानदार अजूबा है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में भृगु मुनि ने इस स्थान पर लम्बे समय तक तपस्या की थी जिस कारण यह भृगु घाट कहलाने लगा। कुछ लोग भेड़ा घाट का अर्थ संगम से लगाते हैं। चूँकि यहाँ बावनी नदी नर्मदा से मिलती है इसलिए इसका नाम भेड़ाघाट पड़ा। यहाँ नर्मदा नदी दोनों तरफ संगमरमर की चट्टानों के मध्य से गुजरती है। नर्मदा नदी के किनारे भेड़ाघाट से मिलने वाला संगमरमर पत्थर आर्कियन युग की चट्टानों से सम्बन्धित हैं।
धुआँधार जल प्रपात
नर्मदा नदी का यह जलप्रपात लगभग 95 मीटर ऊँचाई से तीव्र वेग से गिरता है, जिसकी गर्जना दूर-दूर तक सुनी जा सकती है। इस आकर्षक जल प्रपात में जल की नन्हीं बूँदें बिखरकर धुँए का दृश्य बना देती हैं, इसलिए इसे धुँआधार के नाम से जाना जाता है।

गौरी शंकर एवं चौंसठ योगिनी
भेड़ाघाट के पास नर्मदा के किनारे ऊँची चोटी गौरी शंकर पर मंदिर स्थित है। जो गुलाबी रंग के पत्थरों से बना हुआ है। इसके द्वार पर एक प्राचीन शिलालेख लगा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण संवत् 907 में चेदि राजा नरसिंह देव के कार्यकाले में उनकी माता अल्हण देवी ने बनाया था।
चौंसठ योगिनी मंदिर
दसवीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर में महाकाली चौंसठ योगिनी सहित विराजमान हैं। यहाँ 81 देवियों की सुन्दर मूर्तियाँ एक गोलाकार वृत्त में विराजमान हैं। यें भी गुलाबी पत्थरों से निर्मित हैं। यह मूर्तियाँ छोटे-छोटे मंदिरों में पायी गई हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है। नर्मदा और बाणगंगा के संगम स्थल से ऊपर छोटी सी पहाड़ी पर एक गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर है। यह कलचुरिकालिन मंदिर है। इसका निर्माण कलचुरी नरेश नरसिंह देव की माता अल्हण देवी ने करवाया था।


मण्डला
दुर्ग
जबलपुर से 96 किलोमीटर महिष्मति नामक प्राचीन नगर है जिसे मण्डला कहते हैं। यहाँ बंजर नदी नर्मदा के संगम पर एक दुर्ग विद्यमान है जिसे मण्डला का दुर्ग कहते हैं। नर्मदा नदी इस तीन ओर से घेरे हुए है तथा चौथी ओर गहरी खाई बनी हुई है। यह महल गौड़ राजाओं की राजधानी तथा शक्ति का प्रमुख केन्द्र रहा है। जिसका निर्माण प्रसिद्ध गौड़ राजा नरेन्द्र शाह ने अनेक वर्षों में कराया।
मोती महल
मण्डला से 16 किलोमीटर दूर रामनगर में सघन जंगल में 25 किलोमीटर ऊँचाई पर 65 मीटर लम्बा तथा 61 मीटर चौड़ा आयताकार दुर्ग बना है जिसे मोती महल कहते हैं। यह महल गौड़ नरेश हृदयशाह ने बनवाया था। गोंड जनजाति मुख्यतया नर्मदा के दोनों ओर तथा विन्ध्य तथा सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्र में पायी जाती है।
महेश्वर
महेश्वर को महिष्मति कहा जाता है। यह अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी रहा है। यहाँ सहस्त्रधारा प्रपात दर्शनीय है। यह स्थान घाटों और मंदिरों के कस्बे के रूप में जाना जाता है। यह मोहन जोदड़ो से भी अधिक प्राचीन है। यह स्थान इन्दौर से 90 किलोमीटर दूर है। जो प्राचीन काल में हैहयवंशी नरेश कीर्तिवीर्य अर्जुन की राजधानी था। यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल-किला, कालेश्वर, राज-राजेश्वर, बिठ्ठलेश्वर, अहिलेश्वर, होल्कर परिवार का स्मारक, दशहरा तीर्थ मण्डप, सती बुर्ज आदि हैं।
ओंकारेश्वर
यह स्थान इन्दौर से 77 किलोमीटर दूर है। मान्धाता का शिव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि राजा मान्धाता ने यहाँ स्थित शिवलिंग की पूजा की थी। ओंकारेश्वर का प्राचीन नाम मान्धाता है। यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थलों में सिद्धनाथ का मंदिर, चौबीस अवतार, आशादेवी मंदिर, पंचमुखी गणेश जी, विष्णु मंदिर प्रसिद्ध हैं।

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