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दैनिक जनचेतना

वर्ष:11,अंक:4,गुरूवार,12नवंबर.2020.

  आज का संदेश .

समाजिक शक्तियों के गुलाम मनुष्य के पास, पराधीनतायुक्त ही सही, जीने का कोई विकल्प नहीं है। जीना उस की मजबूरी है। अब जब जीना ही है तो क्यों ना आन्नदपूर्वक, सार्थक जीवन जीने का प्रयत्न किया जाए? इस शब्दों में व्यक्तिगत पसंद, नापसंद सम्मिलित रहती है परन्तु समाज का अभिन्न अंग होने के कारण समाजिक नियमों की अवहेलना नहीँ की जा सकती। निर्धारित सीमां रेखा में जीवन का मन इच्छित आन्नद, अवश्य, प्राप्त किया जा सकता है। मजबूरी में ही सही, बुद्धिमता तो ऐसी जीवन शैली अपनाने नें ही है जो अधिकत्म आन्नद भी दे और समाज के विकास में योगदान भी करे। यह तभी संभव है यदि मनुष्य चेतन हो और उस की न्यूनत्म आवश्कताऐं पूरी हों। भूखे पेट तो सभी दिशाओं में खाद्ध पदार्थ ही दिखाई देते हैं। समाज कल्याण का काम तो भरे पूरे घरों वाले समृद्ध व्यक्ति ही कर सकते हैं।

  पंजाब का इतिहास-4 .

ब्राह्मण ग्रन्थ प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान प्रदान करने में अत्यधिक सहयोग देते हैं। भारत का प्राचीनतम साहित्य प्रधानतः धर्म-संबंधी ही है। ऐसे अनेक ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जिनके द्वारा प्राचीन भारत की सभ्यता तथा संस्कृति की कहानी जानी जाती है। इन में   वेद, ब्राह्मण, उपनिषद,     वेदांग,  रामायण, महाभारत,  पुराण, स्मृतियाँ का विशेष स्थान है।

धार्मिक साहित्य के ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त अब्राह्मण ग्रन्थों से उस समय की विभिन्न अवस्थाओं का पता चलता है। इन में  बौद्ध और जैन ग्रन्थ प्रमुख्य हैं।

  भारतीय़ इतिहास में आज.

12 नवंबर

मुख्य घटनाएँ:

1781 - अंग्रेजों ने नागापट्टनम पर कब्जा किया।

1847 - ब्रिटेन के चिकित्सक सर जेम्स यंग सिंपसन ने बेहोशी की दवा के रूप में पहली बार क्लोरोफार्म का प्रयोग किया।

1896 - भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी सालिम अली का जन्म। 1918 - ऑस्ट्रिया एक गणतंत्र बना।

1930 - लंदन में भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए पहले गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत। 1936 - केरल के मंदिर सभी हिंदुओं के लिए खुले।

1946 - स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और समाज सुधारक मदनमोहन मालवीय का निधन।

1969 - प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निष्कासित किया गया।

1974 - दक्षिण अफ्रीका नस्लीय नीतियों के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा से निलंबित।

1984 - ब्रिटेन ने एक पाउंड का नोट बंद किया, सिक्के चालू किए।

1990 - जापान में सम्राट आकिहितो का परम्परानुसार राज्याभिषेक।

2001 - न्यूयॉर्क में अमेरिकी एयरलाइंस का विमान एयरबस ए-300 दुर्घटनाग्रस्त, 260 यात्रियों की मौत।

2008 - देश का पहला मानव रहित अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 चन्द्रमा की अन्तिम कक्षा में स्थापित। 2009 - भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के 'अतुल्य भारत' अभियान को ‘‘वर्ल्ड ट्रेवल अवार्ड-2009’’ से नवाजा गया।

मदनमोहन मालवीय का निधन

जन्म : 25 दिसंबर 1861 मृत्यु : 12 नवंबर 1946.  

पं.मदनमोहन मालवीय (महामना) का जन्म प्रयाग में (इलाहाबाद) 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता का नाम पं. ब्रजनाथ व माता का नाम मूनादेवी था। वे अपने सात भाई-बहनों में 5वें पुत्र थे। उनके पिता संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे।  

मात्र 5 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता ने उन्हें संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षण लेने हेतु पं. हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती किया, वहां प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात एक अन्य विद्यालय में भेजा गया, जहां से शिक्षा पूर्ण कर वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढने गए। उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज (जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है) से 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.ए.की उपाधि प्राप्त की।

मालवीयजी हिंदू सभ्यता के सजीव प्रतीक थे। उन्होंने हिन्दी-अंग्रेजी समाचार पत्र हिन्दुस्तान का संपादन करके जनता को जगाया। सत्य, दया और न्याय पर आधारित जीवन जीने वाले मदनमोहन मालवीय का व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन, समान रूप से जनता द्वारा पूजित था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 वर्ष तक कांग्रेस की सेवा की। वह सन्‌ 1909, 1918, 1930 और 1932 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की।

उन्होंने हिंदू संगठन का शक्तिशाली आंदोलन चलाया लेकिन कांग्रेस को राजनीतिक प्रतिक्रियावाद और धार्मिक कट्टरता से मुफ्त रखा। हिंदू समाज और भारत की प्राचीन सभ्यता तथा विविध विधाओं एवं कला की रक्षा के लिए मालवीयजी ने विशेष कार्य किया। वह स्वभाव में बड़े उदार, सरल और शांतिप्रिय व्यक्ति थे। उनके कार्यों एवं व्यवहार के लिए जनमानस ने उन्हें 'महामना' कहा था।  

संसार में सत्य, दया और न्याय पर आधारित सनातन धर्म सर्वाधिक प्रिय था। करुणामय हृदय, मन और वाणी के संयम, धर्म और देश के लिए सर्वस्व त्याग, वेशभूषा और आचार-विचार में मालवीयजी भारतीय संस्कृति के प्रतीक तथा ऋषियों के प्राणवान स्मारक थे। जीवन भर  देश सेवा में लगे रहने वाले महामना का 12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की उम्र में बनारस में निधन हो गया। 

 पत्रकारिता .

पत्रकारिता पेशा या व्यवसाय नहीं , एक मिशन है, इज्जत और कार्यवाही पत्रकार की बुलंद कलम कराती है।

पत्रकारिता की चर्चा , पत्रकारों की चर्चा , विशेषकर आज के वक्त में गाहे बगाहे उठती ही रहती है । किसी को कोई सम्मानित कर रहा है , तो कोई किसी को अपमानित कर रहा है , जैसे कि पत्रकार या तो पुण्य धर्म कर रहा है या घोर अपराध कर रहा है ।

आज के वक्त में किसी ईमानदार व सच्चे पत्रकार का कलम चलाना बेहद दूभर है , विशेषकर सोशल मीडिया के जमाने में तो यह तकरीबन नामुमकिन सा ही है । एक पत्रकार की परिभाषा बड़ी व्यापक होती है जिसे व्यक्त करना या परिभाषा के दायरे में बांधना लगभग नामुकिन सा है । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की जो भूमिका रही वह उन क्रातिकारियों के बलिदानों से कहीं ज्यादा ऊपर और अव्वल है , जो क्रांति करते थे , और पत्रकार अपना सब कुछ दांव पर लगा कर उनके समाचार व खबरें फैलाने का काम करके जनता में जागरूकता व उत्साह भरा करते थे । अंग्रेजी हुकूमत ने न जाने कितने पत्रकारों की छापा मशीनें और कागज बंडल सहित उनके लोटे थाली , घर मकान तक कुर्क कर जप्त कर जलवा दिये , मगर फिर भी बगैर धन के भी वे फिर से अपने मिशन में जुट बैठते , कई बार जेल जाते , जेल से बाहर आते , इधर उधर से कुछ जुगाड़ करके फिर अखबार छापने लगते और देश में कांति की मशाल को न केवल सुलगाते रहे बल्क‍ि उसे रोशन व ज्वलन्त बनाये रखा । उस चिंगारी की पैदा होती रही ज्वाला को आखरी तक बुझने नहीं दिया ।

आज की पत्रकारिता कुछ अलग किस्म की है .

 आज पत्रकारिता में 5 प्रकार के वर्ग बन गये हैं, वर्गवार पत्रकारिता की जाने लगी है , पहले जहॉं गरीबी से जमीनी मिट्टी से कलम निकल कर चलती और सच को बयां करने में अंग्रेजी हुकूमत से सीधी टकराती थी । वह एक वर्ग था , देश भर में करीब 95 फीसदी पत्रकारों का वह वर्ग था ।

1. मिशन पत्रकारिता( कलम व जमीन देश , अपनी मिट्टी, मातृभूमि के लिये समर्पित कलम चलाने वाले वे पत्रकार जो कभी किसी सम्मान , पुरूस्कार , वेतन , पारिश्रामिक या प्राप्त‍ि की आकांक्षा व इच्छा न रख कर केवल अपना काम करते हैं , केवल सच बोलते हैं , सच लिखते हैं , उनके लेखन में ईमानदारी रहती है और वे सारे लोभ लालचों से दूर , अपना काम करते हैं । )

2. सम्मान / पुरूस्कार के लिये काम करने वाले , कलम चलाने वाले पेशेवर धंधेबाज पत्रकार ( यह पत्रकार जब भी चाहे जिससे जहॉं से कुछ प्राप्त‍ि संभव हो , सम्मान या पुरूस्कार मिलना संभावित हो , उसी के चरण चुम्बन व चाअुकारिता व चापलूसी करने में सदा ही कर्तव्यरत रह नतमस्तक रहते हैं , इन्हे काफी कुछ मिलता है , यह उन फिल्मों के लेखकों की मानि‍न्द होते हैं जिन्हें पैसे के लिये या केवल सम्मान व पुरूस्कार के लिये ही फिल्म लिखना आता है )

3. तीसरा वर्ग पत्रकारिता में धन्ना सेठों व अमीरों का वर्ग हैं , जिनके इशारों पर उनके अखबारों के विज्ञापन दिये लिये जाते हैं , राज्य सरकार का जनसंपर्क विभाग से लेकर प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो हो या डी.ए.वी.पी. हो , इन्हें जब जितना चाहिये , उतना खुद ब खुद मुँह मांगा मिलता है , इन पर मेहरबानी राजनेताओं की इस कदर रहती है कि इन्हें घर बैठे राज्यसभा में पल भर में पहुँचा दिया जाता है , ये कभी कलम नहीं चलाते , इन्हें पत्रकारिता आती नहीं , लेकिन बड़े बड़े कलमची व पालतू पत्रकार इनके लिये , वेतन भोगी बाबू या क्लर्क बन कर लिख कर इनके अखबार चलाते हैं , इनके हर शहर से दो चार पन्ने के संस्करण बीच में फंसा कर , एक ही विज्ञापन जो एक ही अखबार में दपता है लेकिन उसका भुगतान हर शहर के संस्करण के नाम पर अलग अलग होता है और यह एक विज्ञापन का उतना गुना होता है जितने गुने इनके दो चार पन्नों के संस्करण बीच में पड़े रहते हैं ।

4. चौथे किस्म की पत्रकारिता का वर्ग एक रैकेट व एक दलाल के रूप में काम करता है,इस वर्ग में हर उमर की हसीना से लेकर,दौलत का अंबार परोस कर,कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में असल पत्रकारिता या असल पत्रकारों की मेहनत मिशन व मशक्कत के साथ उनकी इज्जत और उन्हे मिलने वाला धन या सहायता हड़प जाते हैं । तमाम कॉल गर्लों को पत्रकार बना देना , या धन देने वाले रिक्शा चलाने वालों को या शराब माफियाओं को पल भर में पत्रकार बना देना , इनके लिये चुटकियों का और दांयें बांये हाथ का काम रहता है । चाहे जिसे जब चाहे अधि‍मान्यता दिलाना या छीन लेना इनके लिये इनका मूल पेशा है । शराब , शवाब और कवाब परोसने के बादशाह , हालांकि पत्रकारिता की दुनियां में कुछ नहीं जानते ,अ ब स द का भी ज्ञान नहीं रखते मगर किसे अधमिान्यता दिलानी है , किसकी अधमिान्यता खत्म करानी है ,किसे कितना विज्ञापन दिलाना है ,इनके ये सिद्धहस्त होते हैं ,संचालनालय जनसंपर्क से लेकर जिला जनसंपर्क कार्यालयों तक इनका माया जाल हर जगह फैला रहता है,सेक्स एंड भ्रष्टाचार टैक्स ऐसा कौनसा कार्यालय है, जहॉं नहीं चलता, इसलिये इनका धंधा और पेशा बदस्तूर खुल कर चलता है ,जम कर चलता है,ऐसे दलाल पत्रकार विभिन्न सरकारी व् प्रशासनिक अधिकारियों के जूते चाटते और उनकी दलाली करते पुलिस स्टेशनो और दूसरे विभागों में देखे जा सकते हैं।

ये दलाल दिन भर वहीँ उनके दोने पत्तल और चाय की प्याली चाटते नजर आते हैं और उनके इशारे पर खुद को असली बाकी अच्छे पत्रकारों को फर्जी तक का लेबल देंने में भी नहीं चूकते।

5. पांचवां वर्ग उन पत्रकारों का है , जो पहले वाले किस्म के वर्ग की पत्रकारिता करें तो , जिसके विरूद्ध उनकी कलम चलेगी , उस पर व उसके परिवार पर जुल्म और अत्याचार का कहर न केवल उधर से टूटेगा बल्क‍ि , इस देश में जहॉं बेईमानी , झूठ, फर्जीवाड़े , भ्रष्टाचार , सेक्स एंड टैक्स का साम्राज्य चहुँओर फैला हुआ है , वहॉं उन्हें सताया जाता है कि या तो वे खुद ही आत्म हत्या कर लें या लिखना बंद कर दें , पत्रकारिता छोड़ दें या उनकी सीधे हत्या ही करवा दी जाती है । उनकी कलम के चारों ओर खौफ , आतंक व दहशत का जाल पसरा रहता है, पल पल मिलती धमकियां , कभी जान से मारने की धमकियां , और मजे की बात यह कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं , कोई कार्यवाही नहीं ( शायद आपको ऐसे पत्रकारों के लिये अनिल कपूर की  फिल्म ''नायक'' याद आ जाये । ) इनको सताने में , इनका गरीब होना , कमजोर होना , छोटा मीडिया होना , और ऊपर के वर्ग क्रमांक 2 से लेकर 4 तक का इनको अपना दुश्मन खुद ही मान लेना ।

ये 5 प्रकार के वर्ग आज की पत्रकारिता कर रहे हैं , पाठक या दर्शक बहुत आसानी से यह पहचान लेता है कि कौनसा पत्रकार किस वर्ग का है । 

ये 2 नंबर से 4 नंबर तक के दलाल पत्रकारों ने पत्रकारिता की न केवल लुटिया डुबो दी बल्क‍ि चुटिया भी उड़ा दी । और पत्रकारिता जो एक मिशन है , उसकी खाल उधेड़ कर उसमें भूसा कर उसे धंधा एवं पेशा बना दिया ।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के वक्त पत्रकारों की डिग्रीयां और व्यापम फयापम नहीं होते थे और न ये 2 नंबर से लेकर 4 नंबर तक के वर्ग होते थे , जिस पर कलम थी , जिस पर कुछ लिखने की कला व महारत थी , वह जुगाड़ लगा कर पत्रकारिता करने लगता था , उसे किसी अधि‍मान्यता की जरूरत नहीं होती थी , उसे न अधि‍मान्यता मिलने का लालच लोभ उसकी कलम को कुंद व भोंथरा करता और न अधि‍मान्यता चली जाने या छिन जाने का खौफ उसे सता कर चमचागिरी चाटुकारिता चापलूसी भरी कलम चलवाता । न उसे किसी सम्मान के लिये या पुरूस्कार के लिये लिखना होता था , न किसी शराब, शवाब और कवाब के लिये उसकी कलम चलती ।

इन हालातों पर हम एक शेर कहना चाहेंगें , शेर खुद हमारा ही लिखा हुआ है -

जो कलमें बिकतीं नहीं इस आला बाजार में , सरे राह बिकना पड़ता है उन पत्रकारों को बाजार में

जो दे नहीं सकते रकम आबरू और गर्म गोश्त के कवाब , उन्हें सब कुछ गंवाना पड़ता है संसार में ।। 

जातिवाद, वर्गवाद जहॉं पत्रकारिता पर हावी हो कर हुस्न और महफिल का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है , वहीं दूसरी ओर यह कहना लाजिम है , धन्ना सेठों , पैसा लुटाने वालों , और गर्म गोश्त परोसने वाले , कॉलगर्लो के दलाल आज की पत्रकारिता की कमान संभाले दलाली और कमाई के समन्दर में गोते लगा रहे हैं वहीं आजकल जो बात बहुत सुनने में आती है , वह पत्रकारों के लिये एक वेतन आयोग बनाने और सभी पत्रकारों व गैर पत्रकार कर्मचारीयों को वेतन , भत्ते , और पेंशन को लेकर सामने आती है । बस एक यक्ष प्रश्न मात्र इतना सा ही है कि क्या हर मीडिया का संसाधन , आय स्त्रोत और औकात , प्रसारण संख्या मिलने वाला दो नंबर का धन क्या एक बराबर है । क्या सारे मीडिया एक तुल्य आय संसाधन वाले हैं , और एकतुल्य कमाने वाले हैं , सीधा सा जवाब है , कोई कोई मीडिया छोटा मीडिया है , मंझोला मीडिया है तो कोई एकल मीडिया है, कोई बड़ा और लंबा चौड़ा मीडिया हाउस है , कुल मिलाकर सबकी हालत और औकात एक बराबर नहीं है, कुछ असल व पात्र सुयोग्य अनुभवी पत्रकारों को उमर गुजर गई , मगर अधि‍मान्यता तक नहीं मिली , उनके पास देने को पैसे नहीं है , शराब शवाब और कवाब की व्यवस्था नहीं है ।

पत्रकारिता का पेशा और एक स्कूल चलाने का पेशा दोनों लगभग एकतुल्य मिशन हैं , मगर जो फर्क स्कूलों में है , और जो वहॉं होता है , वही पत्रकारिता जगत का हाल है , मिशन होकर भी पत्रकारिता में पांच वर्ग हैं , इसी तरह स्कूल चलाने में भी ऐसे ही 5 वर्ग हैं , मगर स्कूलों में कभी वेतनमान आयोग बनाने और प्रावधान तय करने की बात तक नहीं होती , और उसी के समान समाज सेवा में जुटे पत्रकार , न केवल कहर के तमाम प्र‍हारों से गुजरते हैं बल्क‍ि जिसके विरूद्ध लिख दें उसी के दुश्मन बन जाते हैं और फिर शुरू होता है एक खेल .... स्कूलों में भी ऐसा खेल है मगर कुछ कहर और दुश्मनी कम है ।

  परेरणा .

माता पिता  

एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया।

 उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा।

तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "

बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा। "

वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)। "

आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीँ करते

और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे,

आप जब ठीक से खा नही पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी

फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???

माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...

क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।